अभी चुनाव की घोषणा ही हुई है की राजनितिक दल ओर राजनेता एक दुसरे पर कीचड़ उछालने लगे हैं. जिस तरह मन लुभावन घोषणाओं को नियंत्रित करने के लिए चुनाव आयोग को आचार संहिता लागु करनी पड़ी थी मुझे लगता है उन्हें नेताओ के भाषणों में अपभ्रंश शब्दों का उपयोग न हो इसके लिए भी एक आचार संहिता बनानी चाहिए.
आज ही सुबह यह समाचार देखकर की हमारे नरेन्द्र मोदी जी जो अपने आप को सम्पूर्ण भारतीय मानते हैं उन्होंने कांग्रेस की फज्जीहत कर डाली. वोह भी एक सिनेमा को पुरस्कार मिलने पर:
Wednesday, March 4, 2009
आचार विचार की आचार संहिता
Posted by वंदे मातरम at 9:07 PM
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गठबंधन शब्द जब तक मेरे कानों तक पहुँचता है उसकी एक ही आवाज़ रह जाती है - मिली भागत.
ReplyDeleteमेरा यह मानना है की जब तक एक ही पार्टी की सरकार नहीं बनती, तब तक कोई भी देश को खुशहाल करने की पूरी पूरी जिम्मेदारी नहीं लेगा. सब की राय लेना आवश्यक है पर एक व्यक्ति या पार्टी को जिम्मेदारी लेना भी उतना ही जरूरी है.
यहाँ तो (गठबंधन में) ऐसा हाल है की अगर किसी ने सही निर्णय नहीं लिया तोह बस "ना तेरी ना मेरी, इससे बेहतर कोंई निर्णय हो ही नहीं सकता" कहके लोग अपनी गलती 'सुधार' लेंगे.