कम्बख्त ऐसे समय में जब सारे राजनितिक पार्टियों की नजर दिल्ली की सत्ता पर अगले पांच साल तक राज करने की है सारे राजनेता इस होड़ में लगे हैं की किसके साथ गठबंधन किया जाए ताकि उन्हें बहूत सारी प्रतिस्पर्धा का सामना नहीं करना पड़े और वे आसानी से जितना संभव हो सके सिट कब्जा कर सकें.
ऐसे माहौल में जब बीजेपी का बीजेडी के साथ गठबंधन टूट गया है और महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ गठबंधन की कड़ी भी कमजोर नज़र आ रही है, उद्धव ठाकरे का यह बयान की बीजेपी के साथ उनकी कोई अनबन नहीं है बीजेपी के नेताओं को काफी राहत दे रही होगी.
चुनावी सरगर्मियों के बीच तीसरी मोर्चा का गठन भी काफी चौकाने वाली बातें हैं. कहाँ गए वो दिन जब हम सैद्धांतिक मुद्दों पर राजनीति करते थे न की मौकापरिस्तिथिक आधार पर. ऐसा हो भी तो क्यों न, हमारे देश में इतनी सारी पार्टियां हो गयी है तो सिद्धांतो पर टिके रहना आसान बात नहीं है.
Friday, March 13, 2009
मौकापरस्त राजनीती
Posted by वंदे मातरम at 3:35 AM
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
0 comments:
Post a Comment