Friday, March 20, 2009

सपनों में एक बाग़ लगाया

सपनों में एक बाग़ लगाया
फल फूलों से उसे सजाया
सुबह हुई जब आँख खुली तो
वहीँ वीरान खुद को अकेला पाया.

दिल के गुलशन में एक फूल खिला था
कहीं दूर किसी के अपने के होने का एहसास मिला था
होश संभला तो ये ख़याल आया
अजनबी तो अजनबी होते हैं मैंने क्यों दिल को फुसलाया

राह चलते एक दिन यूँही पीछे से
किसी के क़दमों की खटखटाहट महसूस हुई
जब तक इस आनंद से दिल सराबोर होता
मुहँ मोडा तो देखा हवा का एक तेज झोंका आया

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