Sunday, March 22, 2009

राजनितिक भाषणों में अपभ्रंश शब्दों के उपयोग को रोकना जरूरी

यह हम सब जानते हैं कि चुनाव जितना जरूरी है और चुनावी प्रचार प्रसार में विरोधी पार्टी के नेताओं के ऊपर कटाक्ष करना भी जरूरी है लेकिन हम भारतीय जो एक सज्जन मानव के रूप में जाने जाते हैं हमने सदा से ही मान और मर्यादा को सर्वोपरि रक्खा है यह कहाँ उचित है कि हमारे नेता गन खुलेआम अप्ब्रंश शब्दों का प्रयोग करें. उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि आज कि जनता काफी जागरूक हो चुकी है और उन्हें ऊंच नीच का काफी ज्ञान है.

पिछले सप्ताह तो एक तरीके से देखें तो यह प्रतीत होता है कि हमारे राजनेता लोग सदाचार कि भाषा का प्रयोग करना ही भूल गए. एक तरफ वरुण गाँधी जो एक युवा नेता और काफी मर्यादित परिवार से सम्बन्ध रखते हैं खुलेआम एक ख़ास वर्ग के खिलाफ अपमानजनक भाषा बोल गए. यह सच है कि चुनाव आयोग ने उन्हें इसके लिए काफी फटकार लगाई है और बीजेपी को यह सुझाव भी दिया है कि वरुण गाँधी को चुनाव का टिकट नहीं दिया जाए.



भारतीयता और भारतीय संस्कृति कि गुनगाथा का राग अलापने वाली शिवसेना के नेता उद्धव ठाकरे ने तो हमारे वर्तमान प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह के बारे में ऐसे शब्द का प्रयोग किया जो हम शायद बंद कमरे में भी करने में संकुचन महसूस करते हैं.



उद्धव ठाकरे के मुख से ऐसे अपभ्रंश शब्द सुनने के बाद बौखलाई कांग्रेस ने तो यहाँ तक कह डाली की अगर वे महात्मा गाँधी और नेहरु जैसे नेताओं वाली पार्टी नहीं होते तो उद्धव की जीव निकालवा लेते. पता नहीं गुस्से की कोई हद क्यों नहीं होती.



बातें होंगी तो उनका बतंगड़ भी होगा और अपभ्रंशता की इस राजनीतिक माहौल में कहीं न कहीं हमारे सभ्यता को भी तो आंच आती ही है. क्या करें हम.

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