Saturday, March 21, 2009

आचार संहिता की अवहेलना - कोई रोक सके तो रोकले

जिस रफ़्तार से चुनाव आयोग के पास आचार संहिता के अवलेहना की शिकायतें आ रही है ऐसा लगता है के जबतक चुनाव संपन्न होंगे, शायद ही कोई ऐसा नेता बचेगा जिसके खिलाफ चुनाव आयोग अवहेलना की नोटिस नहीं भेज चूका होगा.

शायद हमारी चुनाव आयोग यह भूल गयी है की हम एक प्रजातंत्र राष्ट्र हैं और हमारी न्याय प्रक्रिया इतनी जटिल है कि इसमें नोटिस जारी करना तो आसान है लेकिन किसी को (खासकर अगर वह आदमी एक नेता हो) कानून के दायरे में लाकर सजा दिलवाना उतना ही मुस्किल है.

आज में अपने ब्लॉग में अबतक अवहेलना के आरोप में पकडे गए सारे नेताओं के बारे में चर्चा करते हैं. इतने सारे नाम आने के बाद तो कभी कभी मुझे यह शक होने लगता है कि कहीं हमारे नेताजी लोगों को अवहेलना क्या होती है यह पता ही तो नहीं है.

फिर शायद चुनाव आयोग को एक क्लास लेकर सारे नेता लोगों को यह सबक सिखाना होगा कि आचार संहिता क्या होती है और इसके फंदे से कैसे बच्चा जाए या फिर उलंघन के माध्यम से हमारे नेतागण अपने आपको जनता के बीच मशहूर (पब्लिसिटी) करना चाहते हैं. अगर ऐसा नहीं होता तो कल वरुण गाँधी के वकील यह नहीं कहते की सजा देना चुनाव आयोग
की सीमा से बाहर की बात है और हम सब यह जानते हैं की जबतक हमारी न्यायप्रणाली कोई फैसला लेगी तबतक चुनाव हो गए होंगे और हमारे वरुण भाई लोकसभा सद्श्य बनकर भारतीय संसद में पहुँच चुके होंगे.



पुत्र तो पुत्र अब वरुण की माता मेनका गाँधी पर भी चुनाव आचार संहिता के उलंघन का आरोप लग गया है. शायद इसीलिए कहा गया है - कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति.



इन सब का परिणाम चाहे जो भी हो एक बात तो सच है की आचार संहिता के उल्लंघन के बाद छोटे छोटे नेता को भी समाचार टीवी चैनलों पर काफी अहमियत मिल जाती है और बिना किसी खर्चा पानी के प्रचार भी हो जाता है. आजकल जब की चुनाव आयोग छोटी छोटी अवहेलना को इतना सारा तुल देकर नेता जी लोगों के नाक की नकेल बन गए हैं मुफ्त प्रचार का इससे अच्छा और क्या माध्यम हो सकता है. लगे रहिये नेताजी हम तो जनता हैं अपनी आँख और अपने समय की परवाह किये बिना आप को झेलते रहे हैं और झेलते रहेंगे.



चलिए फिलहाल इतना ही - हम हैं राही चुनाव के फिर मिलेंगे लिखते लिखते.

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