Thursday, April 2, 2009

वरुण उर्फ़ अभिमन्यु

पिछले कुछ दिनों से वरुण गाँधी खबरों में छाये हुए हैं. एक और मायावती को यह भय है की अगर उन्होंने वरुण को ऐसे ही छोड़ दिया तो वह राष्ट्रिय हीरो बन जायेगा और उन्हें अपने राजनितिक गढ़ उत्तर प्रदेश में सत्ता बरकरार रखने में मुश्किल पैदा होगी क्योंकि पिछले दिनों के चुनावी वाकयात में जो उलटफेर हुए हैं उससे मायावती की राजनितिक पकड़ उत्तर प्रदेश में तो जरूर ही कम पड़ी है. लालू यादव, मुलायम सिंह और रामविलास पासवान का एक साथ जुड़ना मायावती के लिए सबसे हानिकारक घटना है.

ऐसे समय में वरुण गाँधी का यकायक राजनितिक घटक में छ जाना तो मायावती को अचंभित कर गया. आनन फानन में उन्होंने अपने राजनितिक कवायदों का उपयोग करना शुरू कर दिया. पहले तो वरुण को जमानत नहीं मिली और जब मिली भी तो उन्हें राष्ट्रिय सुरक्षा के लिए खतरा के अंतर्गत फिर से अन्दर कर दिया. जिस उत्तर प्रदेश में बाहुबली और गुंडे खुले घूम रहे हैं वहां एक आदमी जो सिर्फ देश की अस्मिता, प्रतिष्ठा और सुरक्षा के रक्षा की बात करता है उसे जेल के अन्दर कर दिया जाता है. मुझे तो माया बहन की यह मायाजाल समझ में ही नहीं आया.



वरुण के राजनितिक घर बीजेपी के नेता भी कम पदेसान नहीं है. उन्हें अचानक वरुण गाँधी एक राष्ट्रनेता के रूप में जनता के सामने प्रकट होते दिखे और भावी प्रधानमंत्री पद के दावेदार लाल कृष्ण अडवाणी ने तो यहाँ तक कह डाला की वरुण को राष्ट्रिय सुरक्षा कानून के अंतर्गत कारावास देना इमर्जेंसी के वक्त धाये गये जुल्म से कम नहीं लगा.अब अडवाणी जी को कौन समझाए की वरुण राजनितिक वैमनष्यता का शिकार है और उन्हें भाषणवाजी छोड़ कर अपने एक युवा और होणार नेता को बचाने के लिए प्रयत्न करनी चाहिए.





ऐसे नाजुक समय में माँ की ममता देखिये - मेनका गाँधी ने तो यह कह दिया की उनका बेटा अभिमन्यु है जो इन छोटे मोटे घटनाओं से डरने वाले नहीं है. वरुण माँ के विश्वास की लाज रखना और पूर्ण सहस के साथ देश और देशवासियों की रक्षा की दिशा में काम करना.

Tuesday, March 24, 2009

नारी! तुम केवल श्रध्दा हो

आज ऐसे ही इन्टरनेट पर खोज कर रहा था तो लाल कृष्ण अडवाणी जी का ब्लॉग दिख गया जिसमे उन्होंने भारतीय नारी की व्यथा कथा का काफी मार्मिक ढंग से उल्लेख किया है. यह तथ्य तो सत्य है कि भारत में नारी को हम पूजनीय और देवी का रूप मानते हैं और हमारे शास्त्रों में तो यहाँ तक व्याख्यान मिलता है कि मातृदेवो भवः (माँ देवता होती है). पिछले कुछ दिन पहले जब तारे जमीन पर में यह गाना माँ मेरी माँ आया था तो उसे सुनकर आज हम सब की आँखे नाम हो जाती हैं. वास्तव में नारी को सिर्फ श्रद्धा कहना एक हद तक उनके अधिकारों का हनन करना ही है. कहीं न कहीं हम यह भूल जाते हैं की नारी सिर्फ श्रद्धा ही नहीं बल्कि शक्ति है, हमारा अस्तित्व है हमारे होने का एहसास है.

पिछले दिनों मैंने कही पढ़ा था कि संसार में एकमात्र सत्य सिर्फ माँ है. वही हमें संसार से सर्वप्रथम परिचय करवाती है और उसी कि आँखों से हम संसार को देखते हैं. नारी एक नारी के रूप अनेक. मुझे देवी भगवत का यह सन्दर्भ याद आता है जहाँ देवता गन जब राक्षसों पर विजय नहीं कर पाते तो जाकर वह शक्ति की उपासना करते हैं और फिर सारे शक्तियों का संकलित रूप ही नारी (माँ शक्ति) के रूप में अवतरित होती हैं. जननी जन्म भुमिस्च स्वर्गादपि गरीयसि (जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर होती है).

आज में लाल कृष्ण अडवानी जी से यह पूछना चाहूँगा की पिछले सत्र में जब उनकी सरकार थी तब उन्होंने महिला आरक्षण बिल को पास क्यों नहीं करवाया. आज जब की चुनाव सर पर है तो उन्हें हमारी भारतीय नारी लाडली कैसे नजर आने लगी.

खैर जो भी हो में तो देशवासियों से यह अनुग्रह करूंगा की हम सब मिलकर अडवाणी जी को कहें की वे सपथ लें कि अगर जनता उन्हें सरकार बनाती है तो लोकसभा में उनका पहला प्रस्ताव इस योजना को लागू करना हो वरना ऐसा नहीं हो कि वे सिर्फ जनता को वादे करते रहें और पांच साल और बीत जाए और हमारी नारी फिर सी अगले चुनाव में एक और भावी प्रधानमंत्री का ब्लॉग पढ़े और वो नारियों की दुर्दशा पर फिर से रोना रोवें.

विश्व की सारी अर्थव्यवस्थाएं जो सुखी और समृद्ध हैं वहां नारीयाँ राष्ट्र की मुख्यधारा का अभिनय अंग है और पुरषों से ज्यादा शक्रिय हैं. आज अगर हम चीन, हांगकांग या सिंगापुर जाएँ तो वहां पुरुष कम महिलायें ज्यादा दिखाई देते हैं. हमारे देश में विल्कुल उलटी गंगा बहती है हम कहने के लिए तो नारी को सर्वोपरि कह देते हैं लेकिन उनकी दुर्गति का अंदाजा भी नहीं लगा सकते.

पिछले कुछ दिनों में नारियों की हालत में भी काफी सुधार हुआ है लेकिन अभी हमें बहूत कुछ करना बाकि है. हमें नारियों को शिक्षा, स्वास्थ और मौलिक सुभिधायों से सुसज्जित करनी पड़ेगी. हमें उन्हें हमकदम बनकर हमारे साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने के काबिल बनाना होगा और इसके लिए सिर्फ चुनावी वादे नहीं बल्कि पूर्ण तन मन और धन से कार्य करना पड़ेगा.

आशा है अडवाणी जी सुन रहे हैं...हम आपके साथ हैं अगर आप दिल से भारतीय नारियों के साथ हैं.

क्या नैनो बनेगी भारत की २१वी सदी का सारथी

"मुझे भारतीयों को एक लाख रुपया में कार उपलब्ध करानी है" - टाटा ग्रुप के चेयरमैन रतन टाटा ने जब यह घोषणा की थी तो बहुतों को शायद यह यकीन दिलाना भी मुश्किल हुआ होगा की ऐसे समय में जब चारो ओर महंगाई की हाहाकार है और सब कोई पैसे कमाने और बनाने के चक्कर में सामानों के दाम बढाने की फिराक में लगे रहते हैं एक भारतीय जनता से वादा करे और उसे सच करे. रतन टाटा ने यह तो साबित कर ही दिया है की आज भी अगर हममें सच और साहस हो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है.

एक लाख की कार बनाने की और लॉन्च करने की घोषणा करते समय शायद रतन टाटा को यह मालूम भी नहीं रहा होगा की यह कार भारतीय सड़क सुरक्षा के माप डंडों पर सही उतरेगा, लोग सुरक्षित अपने घर तक पहुँच पायेंगे या नहीं या फिर इस कार को बनाने में जो लोहा और अन्य कल पुर्जे उपयोग में लाये जायेंगे उनका मूल्य भी वापस आ पायेगा या नहीं. इस एक लाख की कार के सच को साकार होते हुए हर भारतीय के मन में एक गर्व तो जरूर पैदा हुआ होगा की हम भारतीय कुछ भी कर दिखाने का अदम्य साहस रखते हैं.

नैनो जो सिर्फ नाम और पैसे के मामले में एक छोटी कार है, अब तक प्राप्त हुई सूचनाओं के आधार पर एक बात तो पता चल ही गयी है की हरेक हिन्दुस्तानी जिसके परिवार में ४ सदस्य है अब कार में एक साथ बैठकर बाहर घुमने जा सकेंगे.

दूसरी बात जो मुझे इसमें अच्छी लगी वो यह की यह कार वाकई में भारत की मूलभूत आवश्यकताओं को ख्याल में रखकर बनायी गयी है. इसकी ईंधन की कार्यक्षमता जो की लगभग २२ किलोमीटर है काफी हद तक आम आदमी के बजट के अन्दर में है. आज विश्व भर में समाज के पिछडे वर्गों के समस्याओं को ध्यान में रखकर ऐसे सामानों का आविष्कार करना जरूरी है जिससे कमजोर और जरूरतमंद लोगों को लाभ मिल सके. नैनो इस कड़ी में भारत की तरफ से शायद एक सर्वप्रथम प्रयास है और आशा है की इससे सबक लेकर हम सब भी कुछ न कुछ ऐसा सोचेंगे जिससे भारत फिर से विश्व मंच पर सम्मानजनक स्थान प्राप्त कर सके.



टाटा नैनो के कुछ विडियो यहाँ पर देखिये और अपने सुझाव जरूर लिखिए. आखिर आप ही के लिए तो में यह सब यहाँ लिखता हूँ.

टाटा नैनो का आज मुंबई में लॉन्च किया गया




टाटा नैनो एक परिवार की कार है - रतन टाटा





नैनो के प्रारंभिक ग्राहकों का चुनाव लॉटरी के द्वारा


Sunday, March 22, 2009

राजनितिक भाषणों में अपभ्रंश शब्दों के उपयोग को रोकना जरूरी

यह हम सब जानते हैं कि चुनाव जितना जरूरी है और चुनावी प्रचार प्रसार में विरोधी पार्टी के नेताओं के ऊपर कटाक्ष करना भी जरूरी है लेकिन हम भारतीय जो एक सज्जन मानव के रूप में जाने जाते हैं हमने सदा से ही मान और मर्यादा को सर्वोपरि रक्खा है यह कहाँ उचित है कि हमारे नेता गन खुलेआम अप्ब्रंश शब्दों का प्रयोग करें. उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि आज कि जनता काफी जागरूक हो चुकी है और उन्हें ऊंच नीच का काफी ज्ञान है.

पिछले सप्ताह तो एक तरीके से देखें तो यह प्रतीत होता है कि हमारे राजनेता लोग सदाचार कि भाषा का प्रयोग करना ही भूल गए. एक तरफ वरुण गाँधी जो एक युवा नेता और काफी मर्यादित परिवार से सम्बन्ध रखते हैं खुलेआम एक ख़ास वर्ग के खिलाफ अपमानजनक भाषा बोल गए. यह सच है कि चुनाव आयोग ने उन्हें इसके लिए काफी फटकार लगाई है और बीजेपी को यह सुझाव भी दिया है कि वरुण गाँधी को चुनाव का टिकट नहीं दिया जाए.



भारतीयता और भारतीय संस्कृति कि गुनगाथा का राग अलापने वाली शिवसेना के नेता उद्धव ठाकरे ने तो हमारे वर्तमान प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह के बारे में ऐसे शब्द का प्रयोग किया जो हम शायद बंद कमरे में भी करने में संकुचन महसूस करते हैं.



उद्धव ठाकरे के मुख से ऐसे अपभ्रंश शब्द सुनने के बाद बौखलाई कांग्रेस ने तो यहाँ तक कह डाली की अगर वे महात्मा गाँधी और नेहरु जैसे नेताओं वाली पार्टी नहीं होते तो उद्धव की जीव निकालवा लेते. पता नहीं गुस्से की कोई हद क्यों नहीं होती.



बातें होंगी तो उनका बतंगड़ भी होगा और अपभ्रंशता की इस राजनीतिक माहौल में कहीं न कहीं हमारे सभ्यता को भी तो आंच आती ही है. क्या करें हम.

Saturday, March 21, 2009

अमिताभ की राजनितिक आरक्षण

हम सबके सुपरस्टार अभिनेता अमिताभ बच्चन जो राजनीति के साथ आँख मिचौली करते रहे हैं. राजीव गाँधी के काफी करीबी रहे अमिताभ ने जब पहली बार १९८४ में चुनाव लड़ी तो राजनीति के दिग्गज हेमवती नंदन वहुगुना को हराकर एक रिकार्ड विजय हासिल की. यह तो काफी लोगों को याद होगा की जब अमिताभ चुनाव सभा के लिए जाते थे तो लाखों की भीड़ जमा होती थी और महिलायें अपनी ओढनी बिछाकर अमिताभ का स्वागत करती थीं.

लेकिन जब गाँधी खानदान से रिश्ते बिगाड़ने लगे तब अमिताभ ने राजनीति को संन्यास दे दिया और वह समय उनके जिंदगी का एक काफी कठिन और मुश्किलों से भरा था. अमिताभ की पिक्चरें पिट रही थी और उनकी कम्पनी काफी घाटे में थी. आखिरिकर अपने कला और साहस के बल बूते उन्होंने फिर से अपनी साख जमाई और आज फिर से देश के महानायक माने जाने लगे हैं.

कहीं न कहीं राजनीति में होने की एक भूख, एक दर्द तो अमिताभ जी के जहन में है ही नहीं तो अबतक कभी भी प्रकाश झा के साथ काम नहीं करने वाले अमिताभ उनकी आनेवाली फिल्म आरक्षण के लिए हामी भर दी. और वह भी ऐसे समय में जब प्रकाश झा खुद भी राजनीति में अपनी भाग्य दुबारा आजमाने जा रहे हैं. पिछली लोकसभा चुनाव में वे बुरी तरह से हार गए थे और इस बार उनका टक्कर लालू यादव के साले साधू यादव से है जो बागी बनकर कांग्रेस के टिकेट पर बिहार के वेतिया से चुनाव लड़ रहे हैं.

इस फिल्म में वे आरक्षण के खिलाफ चली मुहीम में एक राजनितिक नेता का रोल करेंगे. अब देखते हैं यह पिक्चर जिसमे प्रकाश झा जो विरोधाभाष के ऊपर सिनेमा बनाने में महारत रखते हैं अमिताभ के किरदार और आरक्षण जैसे मुद्दे की अहमियत को बरकरार रखते हुए अमिताभ की प्रतिभा को एक राजनितिक के रूप में किस मुकाम तक ले जाते हैं.



आरक्षण की आग जो एक समय हिन्दुस्तान के अस्तित्व को झंकझोर कर रख दिया था हमें इस बात की उत्सुकता रहेगी की यह पिक्चर आरक्षण के कड़वे सच को किस बारीकी से रुपहले परदे पर प्रस्तुत करती है.

आचार संहिता की अवहेलना - कोई रोक सके तो रोकले

जिस रफ़्तार से चुनाव आयोग के पास आचार संहिता के अवलेहना की शिकायतें आ रही है ऐसा लगता है के जबतक चुनाव संपन्न होंगे, शायद ही कोई ऐसा नेता बचेगा जिसके खिलाफ चुनाव आयोग अवहेलना की नोटिस नहीं भेज चूका होगा.

शायद हमारी चुनाव आयोग यह भूल गयी है की हम एक प्रजातंत्र राष्ट्र हैं और हमारी न्याय प्रक्रिया इतनी जटिल है कि इसमें नोटिस जारी करना तो आसान है लेकिन किसी को (खासकर अगर वह आदमी एक नेता हो) कानून के दायरे में लाकर सजा दिलवाना उतना ही मुस्किल है.

आज में अपने ब्लॉग में अबतक अवहेलना के आरोप में पकडे गए सारे नेताओं के बारे में चर्चा करते हैं. इतने सारे नाम आने के बाद तो कभी कभी मुझे यह शक होने लगता है कि कहीं हमारे नेताजी लोगों को अवहेलना क्या होती है यह पता ही तो नहीं है.

फिर शायद चुनाव आयोग को एक क्लास लेकर सारे नेता लोगों को यह सबक सिखाना होगा कि आचार संहिता क्या होती है और इसके फंदे से कैसे बच्चा जाए या फिर उलंघन के माध्यम से हमारे नेतागण अपने आपको जनता के बीच मशहूर (पब्लिसिटी) करना चाहते हैं. अगर ऐसा नहीं होता तो कल वरुण गाँधी के वकील यह नहीं कहते की सजा देना चुनाव आयोग
की सीमा से बाहर की बात है और हम सब यह जानते हैं की जबतक हमारी न्यायप्रणाली कोई फैसला लेगी तबतक चुनाव हो गए होंगे और हमारे वरुण भाई लोकसभा सद्श्य बनकर भारतीय संसद में पहुँच चुके होंगे.



पुत्र तो पुत्र अब वरुण की माता मेनका गाँधी पर भी चुनाव आचार संहिता के उलंघन का आरोप लग गया है. शायद इसीलिए कहा गया है - कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति.



इन सब का परिणाम चाहे जो भी हो एक बात तो सच है की आचार संहिता के उल्लंघन के बाद छोटे छोटे नेता को भी समाचार टीवी चैनलों पर काफी अहमियत मिल जाती है और बिना किसी खर्चा पानी के प्रचार भी हो जाता है. आजकल जब की चुनाव आयोग छोटी छोटी अवहेलना को इतना सारा तुल देकर नेता जी लोगों के नाक की नकेल बन गए हैं मुफ्त प्रचार का इससे अच्छा और क्या माध्यम हो सकता है. लगे रहिये नेताजी हम तो जनता हैं अपनी आँख और अपने समय की परवाह किये बिना आप को झेलते रहे हैं और झेलते रहेंगे.



चलिए फिलहाल इतना ही - हम हैं राही चुनाव के फिर मिलेंगे लिखते लिखते.

Friday, March 20, 2009

सपनों में एक बाग़ लगाया

सपनों में एक बाग़ लगाया
फल फूलों से उसे सजाया
सुबह हुई जब आँख खुली तो
वहीँ वीरान खुद को अकेला पाया.

दिल के गुलशन में एक फूल खिला था
कहीं दूर किसी के अपने के होने का एहसास मिला था
होश संभला तो ये ख़याल आया
अजनबी तो अजनबी होते हैं मैंने क्यों दिल को फुसलाया

राह चलते एक दिन यूँही पीछे से
किसी के क़दमों की खटखटाहट महसूस हुई
जब तक इस आनंद से दिल सराबोर होता
मुहँ मोडा तो देखा हवा का एक तेज झोंका आया

आई पी एल पड़ी खटाई में

जब करोडो का व्यारा न्यारा लगने वाली बात हो तो भला कोई इतनी आसानी से कैसे छोड़ दे और खासकर अगर वह शख्श ललित मोदी हो और इसका सम्बन्ध आई पी एल से हो जिसमे बड़े बड़े दिग्गजों की साख और कमाई दांव पर लगी हो. एक तरफ ललित मोदी हैं जो इस बात को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं कि उनकी आई पी एल खटाई में पड़ जाए और उनके करोडों कमाने के सपने धुल में मिट जाए तो दूसरी तरफ जनता का गुस्सा और नफ़रत झेल चुकी भारतीय राज्यों के पुलिस एवं अन्य सुरक्षा संगठन चुनाव के गौर तलव किसी भी प्रकार की जोखिम उठाने को तैयार नहीं है.

इतनी बार मैच के तारीख में फेर बदल के बावजूद भी जब राज्य की सुरक्षा व्यवस्था उनके द्वारा सुझाये गए तालिका को स्वीकार नहीं कर रही है तो ललित मोदी जी यह सोच सोचकर पदेसान हो रहे होंगे के आखिर वे करोडो की कमाई का वादा कर चुके मैच के स्पोंसरों को क्या जवाव दें.

आज तो बी सी सी आई के अध्यक्ष रहे शरद पवार के गृह राज्य महाराष्ट्र की पुलिस ने भी मैच के लिए मनाही करी दी है.





Thursday, March 19, 2009

मौकापरस्त राजनीती

कभी एक दुसरे का काफी करीब माने जाने वाले लालू यादव और सोनिया गाँधी अब एक दुसरे से नजर मिलाने से भी कतराते हैं. यह जानकार तो और भी अचम्भा होती है कि कल जब लालू यादव ने सोनिया से मुलाक़ात के लिए इच्छा जाहिर कि तो सोनिया ने सीधा सीधा नकार दिया.

Lalu masterstroke severs special bond with Sonia



अब सोनिया जी के नकारात्मक जवाब से घबराकर लालू जी ने आनन फानन में प्रेस को बुलाकर यह घोषणा कर दी कि वे सोनिया को पूर्ण रूप से सपोर्ट करते हैं क्योंकि लालू यादव को यह अच्छी तरह से पता है कि चाहे वे जीते या हारें उन्हें अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए उन्हें सोनिया की जरूरत पड़ेगी.




दूसरी तरफ एक दुसरे के जानी दुश्मन रहे लालू यादव और रामविलास पासवान ने आपस में हाथ मिलाकर कांग्रेस को बिहार के अस्तित्व पर एक प्रश्नात्मक चिन्ह लगा दिया है. गुस्से में बौखलाई कांग्रेस ने लालू के साले साधू यादव जो बेतिया सिट प्रकाश झा को देने के कारण काफी नाराज हैं से हाथ मिला लिया है. इसे कहते हैं घर का भेदी लंका डाह.

Lalu's brother-in-law joins Congress

दूसरी और कांग्रेस के प्रेम और सम्मोहन में फंसे शरद यादव को तो अपने आप से ही कंफ्यूज हैं. इनकी हालत कभी हाँ कभी ना वाली है. एक दिन कहते हैं कि प्रजा उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहती है तो दुसरे दिन जब सोनिया जी कि धमकी मिलती है तो कहते हैं कि वे प्रधानमंत्री पद के रेस में नहीं हैं.



अब जब की राजनितिक महकमे में पारस्परिक सौहाद्र और प्रेम की धज्जी उडाई जा रही है हमारी बीजेपी कैसे इन सबसे अछूत और दूर रह सकती हैं. आडवानी जी पुरजोर कोशिश कर रहे हैं की किसी तरह से जेटली और जसवंत सिंह को मन लिया जाए और ऐसा सुनने में भी आया है की दोनों की कल एक मुलाक़ात भी हुई. भला हम भही यह कहाँ चाहते हैं की हिन्दुस्तान में कोई लादे. आखिरी प्रेम और भाईचारा तो हमेशा से भारत की पहचान रही है.




हमारे राज्नितिनितिक नेता जो हमेशा प्रेम और भाईचारा के साथ रहने की बात प्रजा जन से करते हैं अगर चुनाव के समय में ऐसे खुलेआम लडाई करेंगे तो फिर जनता उनके इस कलह को क्या नाम दे - कमबख्त अवसरवादिता.

Tuesday, March 17, 2009

घर का भेदी लंका डाह

कभी लालू यादव के बलबूते राजनीति ही नहीं बल्कि पुरे बिहार में अपने बाहुबल का खौफ पैदा करने वाले साधू यादव जो की रिश्ते में लालू यादव के साले भी लगते हैं इस चुनाव में अपने जीजाजी से बगावत करने की ठान ली है. ऐसा लगता है की आजकल लालू जी ने अपनी श्रीमतीजी राबरी देवी जी से सलाह मशवरा लेना छोड़ दिया हैं नहीं तो सारी खुदाई एक तरफ और जोडू का भाई एक तरफ के मुहावरे के हिसाब से तो लालू जी अपने साले साहब को नाराज करने की सोच भी नहीं सकते थे.



एक समय एक दुसरे के जानी दुश्मन रह चुके लालू यादव और राम विलास पासवान ने तो आपस में हाथ मिला लिया है और करें भी क्यों नहीं - आज लालूजी और राम विलास जी दोनों को यह अच्छी तरह से पता है की नीतिश कुमार उन्हें कांटे की टक्कर देने वाले हैं. नीतिश जी ने पिछले कुछ दिनों में बिहार के लोगों को विकास का रास्ता दिखाया है और लोग इस बात से काफी अच्छी तरह से वाकिफ हैं की ऐसे समय में जब लालू जी मुद्रा अभाव का बहाना बनाकर बिहार में विकास की गति को बिलकुल ही ठप्प कर दिया था नीतिश जी ने जीतोड़ कोशिश करके जनता के मुलभुत समस्याओं के तरफ ध्यान तो जरूर ही दिया है.

एक समय बिहार जो बालू, बर्वादी और बदमाशी के चपेट में आकर झुलस रहा था - उसी बिहार में मुलभुत सुबिधियायें जनता तक पहुँचने लगी है और एक तरह की सुरक्षा भावना लोगों में पैदा होने लगी है.

कांग्रेस जो की बिहार में पहले से ही काफी कमजोर है और लालू जी ने मीठे मीठे बोलकर सोनिया गाँधी को पटा लिया है की बिहार में कांग्रेस की कोई अस्तित्व नहीं बन सकती - लालू यादव और पासवान जी ने मिलकर सिर्फ तीन शीटें कांग्रेस के लिए छोड़ी है. ऐसे में साधू यादव ने बगावत कर कांग्रेस के साथ जाने का सगुफा छोड़ दिया है. अब लगता है की रूठे हुए साले को मानाने के लिए रबरी देवी को ही भाई से बात करनी पड़ेगी.



फिलहाल साले और बहनोई के झगडे का परिणाम कुछ भी हो, एक बात तो तय है कि साधू यादव जोश में आकर अपने ही घर में आग लगा आये हैं क्योंकि यह सबको पता है कि बिहार में लालू के बिना साधू का कोई अस्तित्व नहीं है.

बीजेपी के अन्दर की बात

पिछले कुछ दिनों से यह समाचार आ रही है कि अरुण जेटली बीजेपी के अध्यक्ष राजनाथ सिंह से काफी नाराज हैं और इस कारण वे पार्टी के किसी भी रैली या सामूहिक कार्यक्रम में भाग नहीं ले रहे हैं.

अगर पिछले कुछ दिनों से बीजेपी की गतिविधियों पर गौर फरमाएं तो यह साफ़ जाहिर होता है की इनके नेताओं के बीच आपसी सामंजस्य का काफी आभाव है और एक एक कर सारे नेता किसी न किसी उलझन भरी चक्रव्यूह में फंसते चले जा रहे हैं.



आज तो बीजेपी के वरिष्ठ नेता और प्रधानमंत्री पद के दावेदार लाल कृष्ण अडवानी ने तो सफाई भी दे डाली की अरुण जेटली और राजनाथ सिंह के बीच में कोई मतभेद नहीं है.



आज सुबह सवेरे ही तो आडवाणी जी का यह बयान आया था और दोपहर में जब बीजेपी कार्यसमिति की बैठक हुई तो अरुण जेटली फिर से नदारद दीखे. मेरे ख्याल से तो आडवाणी जी को पहले अपने घर को ठीक करना चाहिए ताकि जनता को यह तो यकीन हो जाए की आडवाणी जी में मिलजुलकर राजनीति चलाने की क्षमता है वरना उन्हें शायद भारत की जनता इसीलिए नकार दे की अगर आडवाणी जी अपने पार्टी के सदस्यों को ही नहीं संभाल सकते तो फिर देश को क्या संभालेंगे.




यह सब जैसे काफी कुछ नहीं हो आज चुनाव आयोग ने भी वरुण गाँधी को चुनावी आचार संहिता के उल्लंघन का दोषी पाया है और शायद इसका परिणाम यह भी हो की वे अगली चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य ही घोषित हो जाएँ.

इसे कहते है सर मुडाते ही ओले गिरना - वरुण जी अब पुराने जमाने वाली बात नहीं रही जब इंदिरा जी, जवाहर जी के नाम पर आपलोगों की क़द्र की जाती थी, जैसा की आप जानते ही हैं कि आजकल तो आपको अपने घर में ही पसंद नहीं किया जाता. कृपया संभलकर रहा कीजिये. अभी आपको बहूत ही लम्बी लड़ाई लड़नी है.

Sunday, March 15, 2009

चुनाब के हम सिकंदर

आज कल चुनाब आयोग और आयोग के आला अधिकारी काफी फार्म में नजर आ रहे हैं और हो भी क्यों नहीं आखिरी भारत को सुयोग्य साशक देने की एक कठिन जिम्मदारी जो उनके कंधो पर है.

भिअर जो की होली की हुडदंग के लिए काफी प्रसिद्द है लालू जी जिनकी होली जग प्रसिद्द है इस बार होली खेलना ही भूल गए तो दूसरी और नीतिश कुमार के घर होली खेलने गए बिहार के आई जी और डी आई जी को चुनाब आयोग ने नोटिस दे डाली की उनपर चुनाबी आचार संहिता के उल्लंघन का मामला क्यों न दर्ज किया जाए.

और सबसे महत्वपूर्ण बात तो ये रही की आज चुनाब आयोग ने ३४२३ उम्मीदवारों को चुनाब लड़ने के लिए अयोग्य साबित कर दिया तो वो भी सिर्फ इसलिए के वे पिछले चुनाब के खर्च का व्योरा चुनाब आयोग को नहीं सॉंप सके. अब बताईये पांच साल पहले किये गए चुनाबी वाडे जब हमारे नेतागण को याडी नहीं रहता तो दान दक्षिणा से जमा करके खर्च किये गए पैसों का हिसाब कैसे याद रहेगा. क्या चुनाब आयोग के बही खाते में भूल चुक लेनी देनी के कलम की गुंजाइश नहीं है.



आप हमारे भूल चुक को माफ़ कीजिये तो अगर यह कहानी मजेदार लगे तो अपने फीडबैक जरूर लिखिए. कहानी को अभी थोडी मजेदार बनानी है मेरे दोस्त...

माया की मेहमानबाजी

पिछली रात जब मायावती उच्चाकांक्षी नेताओं की जमवाडा थर्ड फ्रंट जिसके सारे नेता अपने आपको प्रधानमंत्री पद का दावेदार मानते हैं के साथ डिनर पर मुलाकात की और साथ में यह गुगली भी छोड़ डाली की वोह अपने ही बल बूतें चुनाब लडेंगे किसी भी नेता को उन्होंने बोलने का अवसर ही नहीं दिया. आखिरी मायावती द्वारा पडोस गए लजीज खानों में मिली हुई नमक की हलाली भी तो करनी थी.



दक्षिण भारत की मल्लिका जयललिता तो आई ही नहीं तो बाकी लोग जो इस उम्मीद के साथ आये थे की वे मायावती को प्रधानमंत्री पद का मायाजाल छोड़ने में राजी कर लेंगे स्वादिष्ट खाने की स्वाद के सिवाय तो कुछ नहीं कर सके.

में तो जनता से सवाल पूछना चाहूँगा की क्या वे चुनाब के बाद सारे थर्ड फ्रंट के नेताओं को प्रधान मंत्री बनाकर सिर्फ प्रधानमंत्रियों वाली सरकार हिन्दुस्तान को देना चाहेंगे तो उन्हें थर्ड फ्रंट से अच्छी पार्टी नहीं मिलेगी.

Saturday, March 14, 2009

तीसरे मोर्चे की टेढी मेढ़ी चाल

इससे पहले की तीसरा मोर्चा ठीक तरह से अपने पाँव जमीन पर रख सके बहुवादियों वाली इस संगठन के नेता गन अपनी अपनी महत्वाकांक्षा जाहिर करने में व्यस्त हो गए हैं. बहन मायावती ने तो धमकी दे डाली है की अगर उन्हें प्रधानमंत्री का दावेदार घोषित नहीं किया जाता है तो वे बवाल खडा कर सकते हैं.



अब ऐसे में जब की बाकी राजनितिक पार्टियाँ जनता के मन को लुभाने के लिए रणनीति तैयार कर रही है तीसरी मोर्चे के नेता लोग एक दुसरे को मानाने में व्यस्त हैं. हमें तो यह समझ में ही नहीं आता है की इस देश में कभी सफल तीसरा मोर्चा होगा
भी या नहीं.

Friday, March 13, 2009

मौकापरस्त राजनीती

कम्बख्त ऐसे समय में जब सारे राजनितिक पार्टियों की नजर दिल्ली की सत्ता पर अगले पांच साल तक राज करने की है सारे राजनेता इस होड़ में लगे हैं की किसके साथ गठबंधन किया जाए ताकि उन्हें बहूत सारी प्रतिस्पर्धा का सामना नहीं करना पड़े और वे आसानी से जितना संभव हो सके सिट कब्जा कर सकें.

ऐसे माहौल में जब बीजेपी का बीजेडी के साथ गठबंधन टूट गया है और महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ गठबंधन की कड़ी भी कमजोर नज़र आ रही है, उद्धव ठाकरे का यह बयान की बीजेपी के साथ उनकी कोई अनबन नहीं है बीजेपी के नेताओं को काफी राहत दे रही होगी.



चुनावी सरगर्मियों के बीच तीसरी मोर्चा का गठन भी काफी चौकाने वाली बातें हैं. कहाँ गए वो दिन जब हम सैद्धांतिक मुद्दों पर राजनीति करते थे न की मौकापरिस्तिथिक आधार पर. ऐसा हो भी तो क्यों न, हमारे देश में इतनी सारी पार्टियां हो गयी है तो सिद्धांतो पर टिके रहना आसान बात नहीं है.

Thursday, March 5, 2009

बच गयी देश की धरोहर

जिस बापू ने देश को बचाने के लिए अपनी पुर जिंदगी न्योछावर कर दी आज उनके चश्मे, चप्पल आदि को बचाकर विजय माल्या ने यह तो साबित कर ही दिया है की हम भारतीय अपने धरोहरों, अपने आत्मसम्मान और अपनी गरिमा को काफी महत्ता देते हैं. अब वो दिन नहीं रहा जब हम पैसे के आभाव में कभी कभी अपनी बेइज्जती बर्दाश्त कर लेते थे.

आज भारत एक गरिमावान विश्व शक्ति के रूप में उभर कर सामने आ रहा है. आज हम भारतीय पुरे विश्व के सामने यह साबित कर चुके हैं कि हम में वह सब बातें हैं वे सारी खूबियाँ हैं जिसके बल पर हम एक विश्व शक्ति के रूप में उभर कर सामने आने का अदम्य साहस रखते हैं.

आदरणीय विजय माल्या जी - भले ही आपके द्वारा बनाये हुए शराब को पीकर बहूत सारे परिवार बर्बादी के कगार पर पहुँच गए हो लेकिन उन्ही शराब के पैसे से आपने भारत की गरिमा बापू के यादों को बचा लिया है. आपको सलाम.

Wednesday, March 4, 2009

आचार विचार की आचार संहिता

अभी चुनाव की घोषणा ही हुई है की राजनितिक दल ओर राजनेता एक दुसरे पर कीचड़ उछालने लगे हैं. जिस तरह मन लुभावन घोषणाओं को नियंत्रित करने के लिए चुनाव आयोग को आचार संहिता लागु करनी पड़ी थी मुझे लगता है उन्हें नेताओ के भाषणों में अपभ्रंश शब्दों का उपयोग न हो इसके लिए भी एक आचार संहिता बनानी चाहिए.

आज ही सुबह यह समाचार देखकर की हमारे नरेन्द्र मोदी जी जो अपने आप को सम्पूर्ण भारतीय मानते हैं उन्होंने कांग्रेस की फज्जीहत कर डाली. वोह भी एक सिनेमा को पुरस्कार मिलने पर:





दूसरी ओर हमारे राजनीतिक पार्टियो और राजनेताओं को यह अच्छी तरह से पता है की विना गठजोड़ के उन्हें सर्कार बनाने को काफी कठिनाई का सामना करना पड़ेगा और दिल्ली को वही शाशन करेगा जो एक अच्छी गठजोड़ करके मिल बांटकर खाने सरकार चलाने की कला में माहिर हो तो अभी से ही मुलायम सिंह ने कांग्रेस को यह धमकी दे डाली की अगर वो जल्दी से शीट बंटवारा का समझौता नहीं होता तो गठबंधन को तोडा जा सकता है और इसका बुरा खामियाना कांग्रेस को झेलनी पड़ेगी.



कृपया अपने बहुमूल्य सुझाब और राय देना नहीं भूलें.

Thursday, February 26, 2009

हम छोड़ चले हैं महफिल को...

कांग्रेस संचालित साझा सरकार के आखिर दिन धीरे धीरे नजदीक आ रहे हैं. आज उनका भारत के संसद में आखिरी दिन था. अगर हम उनके पांच सालों के उपलब्धियों का लेखा जोखा लें बहोत कुछ खाश देखने को नहीं मिलता है. लेकिन अगर हम पिछले कुछ दिनों को देखे तो कुछ खास बातें जरूर ही हमारी पलकों के सामने आती हैं:



पहली बार भारत के संसद में नोटों की पत्तियां उडी और विश्व की जनता को पता चला की भारत में सिर्फ काले लोग नहीं बल्कि काले धन वाले भी रहते हैं जिनके पास खूब सारा पैसा है. कुछ ने तो इसे प्रजातंत्र की काली तस्वीर कह डाली और कुछ लोगों ने भारत के इतिहास का सबसे शर्मशार दिन की उपाधि दी. लेकिन धक् के तीन पात. हिंदुस्तान एक स्वराष्ट्र प्रजातंत्र है और यहाँ सब को सब कुछ कहने, करने और करवाने की पूरी आज़ादी है.

लेकिन जाते जाते सरकार ने लोगों को कुछ महीने के लिए एक्साइज और सर्विस कर में राहत देकर कुछ वोटरों को लुभाने का काम तो किया ही है. अब देखना है कि उन्हें इसका कितना फायदा मिलता है.

एक तरफ विपक्ष हर जगह ये गुहार लगा रहे हैं कि सरकार लोगों के मेहनत कि कमाई अपनी उपलब्धियों को गिनने के टेलिविज़न चैनल और अख़बार के विज्ञापन देकर लुटा रही है लेकिन विपक्ष यह भूल गए हैं कि पिछली सरकार के जब बीजेपी को भी मौका मिला था तो उन्होंने भी ऐसा ही किया था.

कुछ भी हो हम तो जनता हैं और जब भारत का सत्ता की वागडोर इनके हाथों के सौपी है तो सहना भी तो पड़ेगा.

Monday, February 23, 2009

चुनाव के रणभूमि में खिलाड़ी, अभिनेता और जोकर सब मिलकर बजायेंगे जनतंत्र राग

अब जब की लालू यादव जी ने रेल बजट पेश कर दी है और प्रणब मुख़र्जी जी ने अंतरिम बजट लोकसभा में प्रस्तुत कर दी है, इस बात में कोई संदेह नही की २००९ की सामान्य चुनाब का ऐलान किसी भी वक्त हो सकता है.

सब लोग अपने तरफ़ से पुरजोड़ कोशीश कर रहे हैं की किस तरह से इस चुनाब में जीता जाए और फिर अगले पाँच सालों तक भारत की जनता का शागिर्द बनकर अपनी झोली बड़ी जाए.

इसमें कोई शक नही की भारत एक मजबूत प्रजातंत्र राष्ट्र है और इसकी बुनियाद काफी मजबूत है जिसे कोई आसानी से हिला नही सकता. मुझे तो इस बात पर काफी आश्चर्य होता है की अच्छे लोग राजनीती के मैदान में क्यों नही आ रहे हैं. साथ ही यह भी सोचने की बात है की कोई भी नेता, अभिनेता, हास्य अभिनेता, खिलाड़ी और अन्य लोग जो चुनाब लड़ने की बातें करते हैं सबसे पहले जनता को यह क्यों नही बताते हैं की वोह चुनाब जितने के बाद देश के लिए क्या और जनता उन्हें अपना प्रतिनिधि क्यों चुने.

इस ब्लॉग के मध्यम से चुनाव से जुड़े हुए कुछ ऐसे मुद्दों और खबरों को आपतक लाने की कोशिश करता रहूँगा जिससे शायद अगले चुनाव तक आप मुझे भी अपना प्रतिनिधि चुनने के बारे में सोचना शुरू करदें और फिर में भी एक न्यूज़ आइटम बनकर यहीं कहीं आप से मिलूं.

अज़हरुद्दीन जी ने कांग्रेस ज्वाइन कर राजनीती में आने की अपनी मंशा जाहिर कर दी है, अब देखने वाली बात ये होगी की क्या वे क्रिकेट के मैदान की तरह राजनीती के मैदान में भी चौके और छक्के उडाएंगे या जगहंसाई करके फिर से एक बार पवेलियन लौट जायेंगे - देखते हैं ये राजनीति उन्हें किस मंजिल तक ले जाती है.



राजू श्रीवास्तव जी जो रात दिन टीवी पर आकर हमें हंसते हैं अब उन्होंने भी सोच लिया है की सीधे लोकसभा गृह से लोगों का मनोरंजन करेगे. मुझे तो यह सोचकर ही गुदगुदी सी होती है की जब अगले सदन में नेता लोग लड़ रहे होंगे और एक दुसरे पर छीटाकशी कर रहे होंगे - राजू श्रीवास्तव अपने मनोरंजक अंदाज़ में कहेंगे - ओ गजोधर जी आपलोग ऐसे कहे लड़ रहे हैं अगर ज्यादा गुस्सा आ रहा है तो शांत हो जाइये और मेरा चुटकुला ध्यान से सुनिए हा हा हा हा...




अभिनेता से नेता बने संजू बाबा की तो बात ही कुछ अलग हैं - बहना कांग्रेस की राग अलाप रही हैं तो संजू बाबा कांग्रेस से बदला लेने की बात करते हैं. चाहे इसका अंजाम जो भी हो - मुझे तो ये काफी रोमांचक लगता है की अखिरिकार हमारे नेता जी लोगों को गांधीगिरी की पाठ अब लोकसभा भवन में ही मिल जाया करेंगी. संजू बाबा आपको बाकी लोगों की दुआ मिले न मिले महात्मा गाँधी जी की जरूर मिलेगीं. आज के समय में जब नैतिक मूल्यों का पतन दिन प्रतिदिन हो रहा है कोई तो है जो गाँधी के विचारों को याद करा रहा है - रघुपति राघव राजा राम सबको सन्मति दे भगवान्.


कहाँ चुनाव और कहाँ परिवार. संजय दत्त तो अपने फॅमिली को ही भूल गए. चंदा रे मेरे भइया से कहना बहना याद करी:




संजू बाबा की घोषणा - अब नेताओ को सिखायेंगे राजनीती का पाठ:





आपका हमराही भारतीय दोस्त फिर हाज़िर होगा चुनाब की ताज़ा तरीन खबरों के साथ. तबतक के लिए कलविदा.