आज ऐसे ही इन्टरनेट पर खोज कर रहा था तो लाल कृष्ण अडवाणी जी का ब्लॉग दिख गया जिसमे उन्होंने भारतीय नारी की व्यथा कथा का काफी मार्मिक ढंग से उल्लेख किया है. यह तथ्य तो सत्य है कि भारत में नारी को हम पूजनीय और देवी का रूप मानते हैं और हमारे शास्त्रों में तो यहाँ तक व्याख्यान मिलता है कि मातृदेवो भवः (माँ देवता होती है). पिछले कुछ दिन पहले जब तारे जमीन पर में यह गाना माँ मेरी माँ आया था तो उसे सुनकर आज हम सब की आँखे नाम हो जाती हैं. वास्तव में नारी को सिर्फ श्रद्धा कहना एक हद तक उनके अधिकारों का हनन करना ही है. कहीं न कहीं हम यह भूल जाते हैं की नारी सिर्फ श्रद्धा ही नहीं बल्कि शक्ति है, हमारा अस्तित्व है हमारे होने का एहसास है.
पिछले दिनों मैंने कही पढ़ा था कि संसार में एकमात्र सत्य सिर्फ माँ है. वही हमें संसार से सर्वप्रथम परिचय करवाती है और उसी कि आँखों से हम संसार को देखते हैं. नारी एक नारी के रूप अनेक. मुझे देवी भगवत का यह सन्दर्भ याद आता है जहाँ देवता गन जब राक्षसों पर विजय नहीं कर पाते तो जाकर वह शक्ति की उपासना करते हैं और फिर सारे शक्तियों का संकलित रूप ही नारी (माँ शक्ति) के रूप में अवतरित होती हैं. जननी जन्म भुमिस्च स्वर्गादपि गरीयसि (जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर होती है).
आज में लाल कृष्ण अडवानी जी से यह पूछना चाहूँगा की पिछले सत्र में जब उनकी सरकार थी तब उन्होंने महिला आरक्षण बिल को पास क्यों नहीं करवाया. आज जब की चुनाव सर पर है तो उन्हें हमारी भारतीय नारी लाडली कैसे नजर आने लगी.
खैर जो भी हो में तो देशवासियों से यह अनुग्रह करूंगा की हम सब मिलकर अडवाणी जी को कहें की वे सपथ लें कि अगर जनता उन्हें सरकार बनाती है तो लोकसभा में उनका पहला प्रस्ताव इस योजना को लागू करना हो वरना ऐसा नहीं हो कि वे सिर्फ जनता को वादे करते रहें और पांच साल और बीत जाए और हमारी नारी फिर सी अगले चुनाव में एक और भावी प्रधानमंत्री का ब्लॉग पढ़े और वो नारियों की दुर्दशा पर फिर से रोना रोवें.
विश्व की सारी अर्थव्यवस्थाएं जो सुखी और समृद्ध हैं वहां नारीयाँ राष्ट्र की मुख्यधारा का अभिनय अंग है और पुरषों से ज्यादा शक्रिय हैं. आज अगर हम चीन, हांगकांग या सिंगापुर जाएँ तो वहां पुरुष कम महिलायें ज्यादा दिखाई देते हैं. हमारे देश में विल्कुल उलटी गंगा बहती है हम कहने के लिए तो नारी को सर्वोपरि कह देते हैं लेकिन उनकी दुर्गति का अंदाजा भी नहीं लगा सकते.
पिछले कुछ दिनों में नारियों की हालत में भी काफी सुधार हुआ है लेकिन अभी हमें बहूत कुछ करना बाकि है. हमें नारियों को शिक्षा, स्वास्थ और मौलिक सुभिधायों से सुसज्जित करनी पड़ेगी. हमें उन्हें हमकदम बनकर हमारे साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने के काबिल बनाना होगा और इसके लिए सिर्फ चुनावी वादे नहीं बल्कि पूर्ण तन मन और धन से कार्य करना पड़ेगा.
आशा है अडवाणी जी सुन रहे हैं...हम आपके साथ हैं अगर आप दिल से भारतीय नारियों के साथ हैं.
Tuesday, March 24, 2009
नारी! तुम केवल श्रध्दा हो
Posted by वंदे मातरम at 5:16 AM
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