Saturday, March 21, 2009

अमिताभ की राजनितिक आरक्षण

हम सबके सुपरस्टार अभिनेता अमिताभ बच्चन जो राजनीति के साथ आँख मिचौली करते रहे हैं. राजीव गाँधी के काफी करीबी रहे अमिताभ ने जब पहली बार १९८४ में चुनाव लड़ी तो राजनीति के दिग्गज हेमवती नंदन वहुगुना को हराकर एक रिकार्ड विजय हासिल की. यह तो काफी लोगों को याद होगा की जब अमिताभ चुनाव सभा के लिए जाते थे तो लाखों की भीड़ जमा होती थी और महिलायें अपनी ओढनी बिछाकर अमिताभ का स्वागत करती थीं.

लेकिन जब गाँधी खानदान से रिश्ते बिगाड़ने लगे तब अमिताभ ने राजनीति को संन्यास दे दिया और वह समय उनके जिंदगी का एक काफी कठिन और मुश्किलों से भरा था. अमिताभ की पिक्चरें पिट रही थी और उनकी कम्पनी काफी घाटे में थी. आखिरिकर अपने कला और साहस के बल बूते उन्होंने फिर से अपनी साख जमाई और आज फिर से देश के महानायक माने जाने लगे हैं.

कहीं न कहीं राजनीति में होने की एक भूख, एक दर्द तो अमिताभ जी के जहन में है ही नहीं तो अबतक कभी भी प्रकाश झा के साथ काम नहीं करने वाले अमिताभ उनकी आनेवाली फिल्म आरक्षण के लिए हामी भर दी. और वह भी ऐसे समय में जब प्रकाश झा खुद भी राजनीति में अपनी भाग्य दुबारा आजमाने जा रहे हैं. पिछली लोकसभा चुनाव में वे बुरी तरह से हार गए थे और इस बार उनका टक्कर लालू यादव के साले साधू यादव से है जो बागी बनकर कांग्रेस के टिकेट पर बिहार के वेतिया से चुनाव लड़ रहे हैं.

इस फिल्म में वे आरक्षण के खिलाफ चली मुहीम में एक राजनितिक नेता का रोल करेंगे. अब देखते हैं यह पिक्चर जिसमे प्रकाश झा जो विरोधाभाष के ऊपर सिनेमा बनाने में महारत रखते हैं अमिताभ के किरदार और आरक्षण जैसे मुद्दे की अहमियत को बरकरार रखते हुए अमिताभ की प्रतिभा को एक राजनितिक के रूप में किस मुकाम तक ले जाते हैं.



आरक्षण की आग जो एक समय हिन्दुस्तान के अस्तित्व को झंकझोर कर रख दिया था हमें इस बात की उत्सुकता रहेगी की यह पिक्चर आरक्षण के कड़वे सच को किस बारीकी से रुपहले परदे पर प्रस्तुत करती है.

0 comments: